Guru Ravidas Jayanti 2024: ‘ऐसा चाहूं राज मैं, जहां मिलै सबन कौ अन्न, छोट-बड़ों सब सम बसैं, रविदास रहे प्रसन्न’ की वैचारिकी को स्थापित कर समतामूल समाज का स्वप्न देखने वाले महान संत शिरोमणि, कर्मयोगी और महान समाज सुधारक श्री गुरु रविदास जी महाराज का जन्म 15 जनवरी, 1376 ईस्वी अर्थात 1433 सम्वत् विक्रमी माघ शुक्ल पूर्णिमा प्रविष्टे (15) दिन रविवार को वाराणसी के सीर गोवर्धनपुर (उत्तर प्रदेश) में माता कर्मा उर्फ कलसा देवी जी की कोख से पिता श्री संतोख दास जी उर्फ रघु (राघव) जी के घर हुआ।
श्री गुरु रविदास जी ने अपनी महानता के गुण बचपन में ही दिखाने शुरू कर दिए थे। वह बचपन से ही प्रभु भक्ति में लीन रहने लगे थे और हर उस बात का तर्कसंगत विरोध करते थे, जिससे किसी व्यक्ति, परिवार या समाज को किसी तरह का नुक्सान होता हो। उनकी शादी माता भागवन्ती लोना देवी से हुई और बेटे का नाम श्री विजय दास था।
श्री गुरु रविदास जी जितना भी धन मेहनत करके कमाते थे, अपने परिवार के निर्वाह के अलावा बाकी सारा धन समाज हित में कार्य करने वाले नि:स्वार्थ साधु-संतों और विद्वानों को प्रसाद रूपी भोजन कराने में खर्च कर देते थे। श्री गुरु रविदास जी ने उस समय के अत्याचारी राजाओं के विरुद्ध आवाज बुलंद करते हुए दीन-दुखियों, बेसहारों की आवाज बनकर उस समय की सत्ता से लोहा लिया।
इस कारण उन्हें कई तरह के कष्ट उठाने पड़े लेकिन उन्होंने पाखंड, वहम, भ्रम, जात-पात और हर तरह के भेदभाव के विरुद्ध आवाज बुलंद करके उन लोगों का मार्गदर्शन किया, जिनको उस समय धर्मस्थलों में जाने की अनुमति तो एक ओर, आम रास्ते पर चलने की भी आज्ञा नहीं थी।
उन्होंने जीवन भर पूरी दुनिया को यह संदेश दिया कि हमेशा भगवान को ध्यान में रखते हुए मेहनत करो और अपना समय कभी व्यर्थ मत गंवाओ। उन्होंने भेदभाव के शिकार लोगों को समझाया और उनके अंदर ज्ञान का दीपक जलाया कि निरक्षरता के कारण ही उन्हें हर तरह का अत्याचार सहना पड़ रहा है।
अत: उन्होंने लोगों को शिक्षा प्राप्ति के साथ-साथ अन्य बुराइयों से दूर रहने के लिए भी प्रेरित किया। उनके अनेक भक्त हुए, जिनमें अनेक मुगल और हिन्दू राजा भी हुए। मीराबाई उनकी सर्वाधिक ख्याति प्राप्त शिष्या हैं। कई विद्वान उनको इसलिए भी संतों के आकाश का ध्रुव तारा कहते हैं क्योंकि उन्हीं के कारण उनके गुरु रामानंद और शिष्या मीराबाई का नाम प्रसिद्ध हुआ।
जो भी राजा-महाराजा श्री गुरु रविदास जी महाराज से नाम-दान लेकर उन्हें गुरु बनाते, वह उन्हें यही संदेश देते कि तुम्हारा राज ‘बेगम पुरा’ की तरह होना चाहिए जिसमें रहने वाले किसी भी व्यक्ति को किसी भी तरह का भय न हो, किसी के साथ अन्याय न हो, हर एक को समानता, सुरक्षा और आजादी के बराबर अवसर मिलें।
आइए, श्री गुरु रविदास जी महाराज के 647वें जन्मोत्सव की खुशी में जहां हम अपने घरों में दीपमाला करें, खुशियां मनाएं, वहीं उनके बताए मार्ग पर चलकर देश से बेरोजगारी, अशिक्षा और नशे के खात्मे के लिए समर्पित होकर कार्य करने का प्रण लें, ताकि श्री गुरु रविदास जी महाराज की अपार कृपा हम सब पर बनी रहे।
NEWS SOURCE : punjabkesari