देश के दिल मध्य प्रदेश में भाजपा इस बार कांग्रेस और कमल नाथ के गढ़ छिंदवाड़ा को छीनने की पूरी तैयारी कर चुकी है। प्रदेश की कुल 29 लोकसभा सीटों में से भाजपा ने वर्ष 2019 में 28 सीटें जीत ली थीं, पर छिंदवाड़ा में भाजपा को सफलता नहीं मिल पाई। यहां कमल नाथ के बजाय उनके पुत्र नकुल नाथ मैदान में थे। भाजपा कमल नाथ का छिंदवाड़ा का गढ़ ढहाने में इस बार कोई कसर नहीं छोड़ना चाहती है। पिछले पांच वर्ष से उसकी तैयारी भी जारी है।
भाजपा के हौसले बुलंद
फरवरी में यह चर्चा चली थी कि कमल नाथ भाजपा का दामन थाम सकते हैं और ऐसी स्थिति में नकुल नाथ भाजपा प्रत्याशी हो सकते हैं। हालांकि नकुल नाथ ने इस बात का खंडन कर दिया है। तीन महीने पहले हुए विधानसभा चुनाव में प्रदेश में मिली शानदार सफलता से भाजपा के हौसले बुलंद हैं। भाजपा को भरोसा है कि पीएम मोदी के जादू और रामलला के मंदिर से जागा उत्साह राह आसान कर रहा है।
छिंदवाड़ा भाजपा के लिए शुरू से ही अभेद्य रहा
छिंदवाड़ा में पिछले 72 वर्ष से कांग्रेस का ही एकतरफा कब्जा रहा है। अपवादस्वरूप वर्ष 1997 का उपचुनाव छोड़ दें तो कांग्रेस को यहां से कभी पराजय नहीं मिली। आपातकाल में जब देशभर में कांग्रेस के विरुद्ध लहर थी तब भी छिंदवाड़ा ने कांग्रेस का हाथ नहीं छोड़ा था। वर्ष 1980 से 2014 तक के आम चुनाव में यहां कमल नाथ परिवार का कब्जा रहा है।
हमेशा कांग्रेस का गढ़ रहा छिंदवाड़ा
छिंदवाड़ा में 18 बार लोकसभा चुनाव हो चुके हैं, इनमें से सिर्फ भाजपा ने एक ही बार जीत दर्ज है, वह भी उपचुनाव में। वर्ष 2014 के लोकसभा चुनाव में देश में मोदी लहर थी, जिसमें भाजपा ने मध्य प्रदेश की 29 में से 27 लोकसभा सीटें जीतीं लेकिन छिंदवाड़ा सीट अजेय ही रही और कमल नाथ ने जीत दर्ज की। 2019 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस को प्रदेश में केवल छिंदवाड़ा में ही जीत मिली।
पांच वर्ष में भाजपा का छिंदवाड़ा में रहा फोकस
पिछला लोकसभा चुनाव हारने के बाद केंद्रीय मंत्री गिरिराज सिंह को छिंदवाड़ा का प्रभारी बना दिया गया था। इन पांच वर्षों में भाजपा ने कार्यकर्ताओं से लेकर बूथ सशक्तीकरण, संगठन विस्तार सहित पार्टी को जमीनी स्तर पर मजबूत किया। गिरिराज सिंह और केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने छिंदवाड़ा के दौरे भी किए। हालांकि इन प्रयासों के बाद भी भाजपा विधानसभा चुनाव में यहां बेहतर परिणाम नहीं दे पाई।
आदिवासी सीटों पर कांग्रेस दे रही भाजपा को चुनौती
भले ही हर लोकसभा चुनाव में भाजपा ने बढ़त बनाई हो, लेकिन हाल ही में हुए मध्य प्रदेश विधानसभा चुनाव के परिणामों में आदिवासी बहुल कई सीटों पर कांग्रेस ने भाजपा को कड़ी चुनौती दी है। 28 वर्ष बाद 2023 के विधानसभा चुनाव में पहली बार आदिवासी सीटों पर भाजपा को मालवा से महाकोशल अंचल तक नुकसान हुआ है।
झाबुआ से अपने प्रचार अभियान की शुरुआत
इस आधार पर पार्टी के रणनीतिकार भी मान रहे हैं कि लोकसभा के लिए मध्य प्रदेश में एसटी वर्ग के लिए सुरक्षित छह सीटों में से शहडोल और बैतूल को छोड़कर बाकी चार सीट रतलाम, धार, खरगोन और मंडला में भाजपा के लिए अब भी अनुकूल माहौल नहीं है। यही वजह है कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने झाबुआ से अपने प्रचार अभियान की शुरुआत की है। विधानसभा में एसटी के लिए आरक्षित 47 सीटों में भी भाजपा को 24, कांग्रेस को 22 और एक पर अन्य को विजय मिली है।
चार अजजा सुरक्षित लोकसभा क्षेत्रों में कांग्रेस ने बनाई बढ़त
खरगोन (अजजा) संसदीय सीट में आठ विधानसभा क्षेत्रों में से पांच अनुसूचित जनजाति के लिए आरक्षित हैं। विधानसभा चुनाव में यहां से कांग्रेस को चार और भाजपा को एक सीट पर विजय मिली है। देखा जाए तो आठ में से कांग्रेस के पास पांच और भाजपा के पक्ष में तीन सीट गई हैं। यहां भाजपा सांसद गजेंद्र सिंह पटेल को ही पार्टी ने फिर प्रत्याशी बनाया है। मालवांचल की धार भी आदिवासी बहुल सीट है। यहां भी आठ में से पांच विधानसभा सीटें कांग्रेस ने जीती हैं।
सात सीटें आदिवासी वर्ग के लिए आरक्षित
महाकोशल की मंडला आदिवासी सीट से केंद्रीय मंत्री फग्गन सिंह कुलस्ते सांसद हैं। वे स्वयं विधानसभा चुनाव हार गए थे। मंडला संसदीय सीट में भी आठ विधानसभा क्षेत्र आते हैं। विधानसभा चुनाव में पांच पर कांग्रेस और तीन में भाजपा को जीत मिली है। रतलाम-झाबुआ संसदीय सीट में आठ में से सात सीटें आदिवासी वर्ग के लिए आरक्षित हैं। इनमें से भाजपा और कांग्रेस को तीन-तीन सीटें मिली हैं। एक अन्य सीट पर भारत आदिवासी पार्टी का प्रत्याशी जीता है। भाजपा ने रतलाम के सांसद गुमान सिंह डामोर का टिकट काटकर अनीता नागर सिंह चौहान को प्रत्याशी बनाया है।
NEWS SOURCE : jagran